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कविता

सजनि ! कौन तम में परिचित सा

महादेवी वर्मा


सजनि ! कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता ?
सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता !

छू स्मृतियों के बाल जगाता,
मूक वेदनाएँ दुलराता,
हृत्तंत्री में स्वर भर जाता,
बंद दृगों में, चूम सजल सपनों के चित्र बना जाता !

पलकों में भर नवल नेह-कन
प्राणों में पीड़ा की कसकन,
श्वासों में आशा की कंपन
सजनि ! मूक बालक मन को फिर आकुल क्रंदन सिखलाता !

घन तम में सपने सा आ कर,
अलि कुछ करुण स्वरों में गा कर,
किसी अपरिचित देश बुला कर,
पथ-व्यय के हित अंचल में कुछ बाँध अश्रु के कन जाता !
सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता ?
 


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